संगोष्ठी का दृश्य
(तस्वीर में
हैं जलील रिज़वी, राजकमल नायक, पद्मश्री
डॉ. सुरेन्द्र दूबे,
डॉ.
सच्चिदानंद जोशी एवं सुभाष मिश्र)
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रविवार 30 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में रविवार को ‘सुतनुका सोसाइटी फॉर परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स’ के द्वारा
एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय रहा “वर्तमान
परिदृश्य में रंगमंच की चुनौतियां और विकल्प”। इस संगोष्ठी
की अध्यक्षता कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद
जोशी ने की और प्रमुख वक्ता के तौर पर पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दूबे, राजकमल नायक, जलील रिज़वी, सुभाष
मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। संस्था के अध्यक्ष रवीन्द्र गोयल ने बताया कि
गोष्ठी का मक़सद रंगमंच के क्षेत्र में एक मंच तैयार करना है ताकि इस दिशा में
संवाद की एक निरंतर प्रक्रिया शुरू हो सके। उनका कहना है कि किसी भी क्षेत्र में
विकास के ठहराव का प्रमुख कारण संवाद शून्यता है, जबकि विकास
के लिए संवाद का बना रहना बहुत ज़रूरी है। संस्था का प्रयास रहेगा कि यह परम्परा
निरंतर बनी रहे और कम से कम हर दो महिने में रंगमंच के क्षेत्र में एक विचार
विमर्श बैठक ज़रूर आयोजित की जाए।
संस्था की अध्यक्षता करते हुए
सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि नाटक एक कला है, उसे पांचवे वेद की
संज्ञा दी गई है। हर व्यक्ति के अंदर कहीं ना कहीं एक कलाकार होता है और वो किसी
ना किसी तरह नाटक करता रहता है। इसलिए नाटक के मरने का प्रश्न ही नहीं उठता।
तात्कालिक तौर पर संकट आ सकता है लेकिन नाटक एक बहुआयामी विधा है जो लगातार कलाकार
और दर्शक की रचनात्मकता का विस्तार करती है।
इप्टा के संयोजक सुभाष मिश्र ने
बताया कि नाटक साहित्य से कहीं अधिक है। रंगमंच में रिटेक नहीं होता। सिनेमा में
क्लोज़प होता है टेलिविज़न लोगों के बेडरूम तक घुस गया है लेकिन नाटक की तरह एक
संबंध स्थापित नहीं कर पाता। नाटक बहुत अधिक मेहनत मांगता है। हमें परिवार में
नाटक का संस्कार देना होगा। थियेटर को लोगों तक ले जाना होगा।
पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दूबे के
मुताबिक जब रवीन्द्र नाथ टैगोर की जय हे !, ए.आर. रहमान की जय
हो बन जाती है तो रंगमंच की आवश्यकता होती है। फिल्मों में सबकुछ है पर कहानी नहीं
है। ज़रूरत है नाटककार और निर्देशक के बीच एक निरंतर संवाद की और ये क्रम बना रहना
चाहिए।
वरीष्ठ रंगकर्मी राजकमल नायक ने
कहा कि रंगमंच चुनौतियों से डरता नहीं है। तमाम चुनौतियों के बावजूद रंगमंच जीवित
है। वो अपनी समस्याओं से ख़ुद जूझता है। आर्थिक आधार सबसे ज़्यादा परेशान करता है पर
पेशेवर ग्रुप होने चाहिए। और पेशेवर नाट्यकर्म होना चाहिए ताकि कलाकार अपनी
आजीविका थियेटर से जुटा सके।
समारोह में वरीष्ठ रंगकर्मी
मिर्ज़ा मसूद, संतोष जैन, गिरीष पंकज, जय प्रकाश मसन्द, ग़ुलाम हैदर, और साथी, हरीश अभिचंदानी, ममता आहार, सलीम खान, मुस्कान अग्रवाल और दूसरे साथियों ने शिरकत की। रवीन्द्र गोयल ने सदन को
विश्वास दिलाया कि संवाद की यह कड़ी बनी रहेगी और आने वाले दिनों में संस्था द्वारा
एक स्क्रिप्ट बैंक तैयार किया जाएगा ताकि युवा रंगकर्मियों को नए नाटको की कमी ना
हो। साथ ही नाटक वाचन के सिलसिले को शुरू किया जाएगा ताकि नए नाटककार सामने आ
सकें। और नाटककार एवं निर्देशक के बीच संवाद शुरू हो सके।
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