Monday, October 20, 2014

SEMINAR- WRITING WORK OF SHANKAR SHESH

आज भी प्रासंगिक हैं डॉ. शंकर शेष


 

संस्कृति विभाग, छत्तीसगढ़ शासन और सुतनुका सोसाइटी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को “वर्तमान परिदृश्य में डॉ. शंकर शेष के लेखन की उपयोगिता” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरीष्ठ रंगप्रेमी सुभाष मिश्र ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में नाटकों पर बहुत गम्भीर और आलोचनात्मक किताबें नहीं मिलती। शंकर शेष पर बातें करने वाले लोग भी सामने नहीं आते। ऐसे में डॉ. शंकर शेष जैसे व्यक्ति पर बातचीत करने की पहल, सुतनुका सोसाइटी की रंगकर्म के प्रति वचनबद्धता की ओर इशारा करती है। श्री मिश्र ने डॉ. शंकर शेष के तमाम नाटकों का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज का इंसान जो नहीं है वो बनना चाहता है। एक नेता ब्यूरोक्रेट बनना चाहता है तो एक ब्यूरोक्रेट एक नेता। उन्होने कहा कि डॉ. शेष ने अपनी समग्र रचनाओं में सामाजिक विवश्ताओं और समसामयिक मुद्दों को लगातार उठाया है।

सुतनुका सोसाइटी के अध्यक्ष रवीन्द्र गोयल ने कहा कि डॉ. शेष ने अपने लेखन के माध्यम से हमारे जीवन की विडंबनाओं और विसंगतियों को जड़ से पकड़ने का प्रयास किया है। डॉ. शंकर शेष के नाटकों में जहां एक ओर जाति व्यवस्था के नाम पर होने वाले अत्याचारों का यथार्थ चित्रण हुआ है तो दूसरी ओर न्याय व्यवस्था पर भी कटाक्ष किया है। उन्होने जिन मुद्दों को उठाया, जिस तरह से उठाया वे आज भी समाज में मौजूद हैं। रवीन्द्र ने चिंता भी जताई कि डॉ. शंकर शेष को शायद साहित्य जगत में वो स्थान नहीं मिल सका जिसके वे हक़दार थे।
                                                           
सिंधी नाटकों के निर्देशक, कलाकर और वरीष्ठ रंगकर्मी श्री जयप्रकाश मसंद ने कहा कि 70 के दशक में लोगों ने उन नाटकों को मंचित करना चाहा या खेला जो अभिजात्य वर्ग के नहीं थे। शायद इसीलिए डॉ. शंकर शेष ने इन वर्गों से जुड़ी समस्याओं को अपने नाटकों के केन्द्र में रखा। इस दृष्टि से आज के दौर में डॉ. शंकर शेष को याद करना ही अपने आप में बड़ी बात है। 

वरीष्ठ रंगकर्मी संतोष जैन ने भी कहा कि आज भी लोगों का विश्वास, उनकी आस्था, न्यायपालिका में है। लेकिन आज भी न्यायपालिका उसी स्थिति में है जहां पहले थी, जिस दौर का ज़िक्र डॉ. शेष ने अपनी रचनाओं में किया है। उन्होने लेखक की तारीफ़ इसलिए भी की कि डॉ. शेष ने कभी अपने निर्णयों को किसी पर थोपा नहीं बल्कि लोगों की अपनी इच्छाओं पर छोड़ दिया कि वे अपनी समझबूझ से निर्णय करें।


गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ और यहां के रंगकर्मियों के लिए अक्टूबर का महिना महत्वपूर्ण है। 02 अक्टूबर 1933 को जन्मे डॉ. शंकर शेष 28 अक्टूबर 1981 को इस दुनिया से रुख़सत हुए। इसे ध्यान में रखते हुए सुतनुका सोसाइटी द्वारा प्रदेश के नाटककार की बात करना, उनके नाम से एक नाट्य समारोह का आयोजन करना नि:संदेह एक साहसिक और सार्थक क़दम है।

         

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