Wednesday, November 4, 2015

TAX FREE ENTERTAINMENT

सुतनुका सोसाइटी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स
की 
नई प्रस्तुति 


टैक्स फ्री 
एंटरटेनमेंट 


नाटक के बारे में :

ज़िन्दगी में अंधापन किसी शाप की तरह होता है। जन्म से हो तो फिर भी व्यक्ति उससे समझौता कर लेता है लेकिन अगर वो बीच ज़िन्दगी में हो जाए तो जीवन कटना बहुत मुश्किल हो जाता है और व्यक्ति किसी बोझ की तरह बस उसे काटता है, जीता नहीं है। लेकिन अगर आपके पास एक अलग नज़रिया है और मुश्किलों से सामना करने की कुव्वत है तो आप कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं और ज़िन्दगी ख़ुशगवार होने लगती है। डॉ. चन्द्रशेखर फणसलकर द्वारा मूलत: मराठी में लिखा यह नाटक “टैक्स फ्री” भी कुछ इसी तरह की कहानी है जिसमें दृष्टिहीनों द्वारा बनाए गए एक क्लब द्वारा बिना बोझिलता के अंधा जीवन जीने की कला को हास्य के माध्यम से दर्शाया गया है। इसमें दर्शकों के लिए विशुद्ध मनोरंजन की पर्याप्त विषय वस्तु है। इसका हिन्दी अनुवाद विदुला गोरे ने किया है। 

नाटक तीन अंधे लोगों की कहानी है जो अपनी मौजूदा कमियों और परेशानियों को भूलकर ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीना चाहते हैं। दुख और दर्द को भूलकर किसी भी तरह मनोरंजन चाहते हैं और उसके लिए कुछ करते हैं। वे मिलकर एक ब्लाइंडमेंस क्लब की स्थापना करते हैं और उसकी सदस्यता के लिए कुछ नियम-शर्ते रखते हैं। जब कोई नया सदस्य इसमें जुड़ता है तो उसे कैसी-कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है यह दर्शकों को बार-बार गुदगुदाता है और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट, उनके दिल में हंसी और मन में सुकून पैदा करने का प्रयास करता है। अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो ख़ुद को सफ़ल मानेंगे अन्यथा अन्य प्रयासों में इसमें सुधार के साथ फिर आपके सामने प्रस्तुत होते रहेंगे।  

मंच पर
जगताप - समीर श्रीवास्तव
पंडरपुर - मुक्ता साहू
काले - वीरंची दीप 
केंजले कृष्णा सोलंकी
सोनावड़े - महेन्द्र देवदास

मंच परे
मंच प्रबंधन - सुजीत डे
प्रोपर्टीज़ - मुक्ता साहू
वेशभूषा - लता गोयल
  रूपसज्जा - अनुपमा तिवारी
 प्रचार–प्रसार - समीर श्रीवास्तव

      प्रकाश - हरीश अबिचंदानी
संगीत संचालन - अंकित गोयल


निर्देशन - रवीन्द्र गोयल



3 comments: