नाटककार और निर्देशक के बीच संवाद की ज़रूरत
“कौन सा नाटक कब, कहां, कैसे और कितना खेला जाए यह
निर्देशक तय करता है”। यह कहना है प्रसिद्द नाटककार अख़्तर अली का। उन्होने बताया
कि किसी नाटक की लगाम पूरी तरह से निर्देशक के हाथ में होती है और ऐसे में नाटककार
काफ़ी हद तक ख़ुद को ठगा सा महसूस करता है। दरअसल निर्देशक कहीं ना कहीं असफ़ल होने से
डरता है और वो ख़ुद नए नाटक के मंचन की ज़िम्मेदारी से बचते हुए पहले से सफ़ल हो चुके
नाटकों को ही मंचित करना चाह्ता है। अख़्तर अली सुतनुका सोसाइटी फॉर परफ़ॉर्मिंग
आर्ट्स द्वारा रविवार को वृंदावन हॉल में आयोजित की गई गोष्ठी में प्रमुख वक्ता के
तौर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। गोष्ठी का विषय रहा-“हिन्दी नाट्य रंगमंच में
कमी लेखन की या मंचन की”।
आधार वक्तव्य देते हुए रंगप्रेमी सुभाष मिश्र ने
बताया कि किसी भी नाटक को केवल साहित्यिक मूल्यों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता| उसके
रंग मूल्यों का भी उसके महत्त्व और उसकी सफलता में बराबर का योगदान होता है| दूसरे
प्रमुख वक्ता योगेन्द्र चौबे ने निर्देशक के तौर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि
नाटककार को भी रंगमंच की मजबूरियों को समझना होगा और निर्देशक की बातों को समझते
हुए एक सामंजस्य बैठाते हुए आवश्यक परिवर्तनों के लिए अपने विचारों की खिडकियों को
खुला रखना होगा, क्योंकि स्थान और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए कुछ परिवर्तन
आवश्यक हो जाते हैं|
अध्यक्षता कर रहे डॉ. सुशील त्रिवेदी ने कहा कि आज की
भाषा खिचड़ी हो गयी है| ऐसे में या तो नाटककार अति साहित्यिक हो जाते है या फिर
भाषा इस क्षण की भाषा नहीं रहती| केवल लिखने से नाटक नहीं होता बल्कि निर्देशक
उसमे ध्वनी पैदा करता है, वो अपने मन्चन से उसकी देह लय तय करता है|
सुतनुका सोसाइटी के अध्यक्ष रवींद्र गोयल ने बताया की
गोष्ठी का उद्देश्य नाटककार और निर्देशक के बीच संवाद स्थापित करना था| नाटक ना तो
केवल लेखक का हो सकता है और ना ही केवल निर्देशक का| रंगमंच के लिए सभी
रंगकर्मियों को अपने अहम् की हवि देनी होगी, क्योंकि रंगमंच के सामाजिक सरोकार इन
सब से कहीं बड़े हैं| रंगमंच में नाटकों की कमी या कहें नाटकों की अनुपलब्धता को
ध्यान में रखते हुए सुतनुका सोसाइटी ने एक स्क्रिप्ट बैंक तैयार किया है| जिसमें 712
नाटकों की सूची जारी के जा रही है| इस सूची को http://sutanukaperformingarts.blogspot.in पर देखा जा सकता है|
इस नाट्य गोष्ठी में अन्य श्रोताओं के अलावा प्रसिद्ध
रंगकर्मी जलील रिज़वी, मिन्हाज़ असद, जय प्रकाश मसंद, जय प्रकाश शर्मा, गिरीश पंकज,
निसार अली, संतोष जैन, ममता आहार, योग मिश्र, संजय महानंद, वाहिद शरीफ़, अरुण
काठोटे, श्वेता बजाज, लता गोयल, हरीश अबिचंदानी मौजूद थे|






Good Work. Keep it Up
ReplyDeleteBahut hi acha pryas hai......
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