Monday, June 30, 2014

CHILDREN THEATRE WORKSHOP




ज़िन्दगी को मायने देता नाटक

रायपुर के सत्यम नगर, कचना में चल रही बाल नाट्य कार्यशाला में बच्चे ना केवल नाटक बल्कि समसामयिक बातें भी सीख रहे हैं। कार्यशाला में भाग लेने वाली 9 से 14 साल की बच्चियां हैं जो अपने क्षेत्र में इस तरह का प्रशिक्षण पाकर बहुत उत्साहित नज़र आ रही हैं।

कार्यशाला के संचालक रवीन्द्र गोयल ने बताया कि ज़्यादातर बच्चियों के मां-बाप मज़दूरी का काम करते हैं। इस इलाके के ज़्यादातर लोग पढाई से ज़्यादा बच्चियों को अपने साथ मज़दूरी पर ले जाना पसंद करते हैं। कोई बच्ची घर की आय बढ़ाने के लिए मज़दूरी पर जाती है तो कोई केवल भाई के बच्चों की देखभाल के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ चुकी है। उनके मां-बाप नहीं चाहते कि वे बच्चियां इस तरह की किसी कार्यशाला में भागीदारी करे। ज़ाहिर है काफ़ी बच्चे केवल इस वजह से आने से कतराते हैं। फिर भी करीब 20 बच्चियां लगातार कार्यशाला आ रही हैं और बेहद लगन के साथ हर एक्सरसाइज़ में शिरक़त करती हैं।

प्रारम्भ में कुछ डर और कुछ शर्म से सामने ना आने वाली कार्यशाला की प्रतिभागी बच्चियां अब ना केवल अपनी साथियों के साथ अलग-अलग खेल में हिस्सा लेती हैं बल्कि विभिन्न समसामयिक विषयों पर ख़ुद छोटे-छोटे नाटक करके दिखाती हैं। वे लगातार समाज में मौजूद अलग-अलग समस्याओं पर बेबाक अपनी बात रखती हैं।

रवीन्द्र के मुताबिक सुतनुका सोसाइटी द्वारा आयोजित यह नाट्य कार्यशाला नाटक सिखाने की नहीं, बल्कि कोशिश है इन बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करने की। उनकी झिझक खोलने की और उनमें बैठे मंच के भय को भगाने की। अगर कहा जाए कि यह प्रयास है इस बात का कि वे अपने आपको खुलकर अभिव्यक्त कर सकें तो बिलकुल ग़लत नहीं होगा।


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